अपनों से अपनी बात

"CHAIRMAN RELIEF FUND" बनाया जा रहा है, जानकर ख़ुशी हुई, बोर्ड में राहत कोष की स्थापना का विचार आया अब राहत कब मिलेगी उस अव्यवस्था से जिसमें तरह -तरह के हितों की पूर्ति के लिए गुरु - चेलों की श्रंखला, अपने - पराये का विभाजन, अपने लोगों की पहचान, अपनों का काम, हाय अपने - बस यही होता रहता है और कोई काम नहीं। आखिर किन आधारों पर हम छोटे से बोर्ड में अपने - पराये का बंटवारा करने में लगे हैं, सिर्फ अपने तुछ स्वार्थ, छोटी मानसिकता के साथ। एक छोटा संगठन जहाँ अच्छा काम करने की संभावना थी उसमे भी अपनी असलियत और छोटी मानसिकता का परिचय दे रहे हैं। हम सब किस लायक बचे हैं ? क्या गुलाम भारत के, आजाद भारत के लिए यही सपने थे ? न ही कहीं अच्छा काम करने के लिए कोई कह रहा है और न ही कोई कर रहा है बस अपनी तारीफें बटोरने को हम अपनी क़ाबलियत और योग्यता मानकर अहम् करें तो इससे बढ़कर मुर्खता और क्या होगी। योग्यता और प्रतिभा तो लोगों को सुविधा और राहत प्रदान करने में है न की कष्ट व तकलीफ देने में।
आओ मिलकर कुछ अच्छा करें जिससे आपस की दूरियां मिटें, कुछ आगे बढ़ें, एक नया रास्ता चुनें जहाँ सब मिलकर रह सकें।

3 comments:

  1. Than what we should do in this situation?

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  2. Is any impact from 1958 to till date? band karo drama

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  3. बहुत बढ़िया आपका दर्द सिर्फ आपका ही नहीं शायद हर उस अधिकारी और कर्मचारी का भी है जो निष्पक्ष सेवा भाव से काम करना चाहता है मगर क्या करे कोई सुपरमन है नहीं परिवार समाज सब देख कर चुप रहना पड़ता है मगर और जगह की तुलना में यहाँ अभी भी सब बढ़िया है

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