सम्हल जाओ प्यारों

जरा सोचो क्या श्रमिक शिक्षा की यही हालत बनी रहेगी ? आज तक एक भी परिणाम नहीं कोई प्रक्रिया नहीं ? हम सब अपनी सुविधा से काम कर रहे हैं , क्या सच में हम श्रमिक के लिए काम कर रहे है ? अब आर टी आई और लोकपाल का युग है सम्हल जाओ नहीं तो लोकपाल के लिए आवेदन करना पड़ेगा बोर्ड में काम नहीं कर पाओगे

मात्रभाषा का सम्मान

हिंदी दिवस व हिंदी पखवारा की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाये ।
हिंदी में अधिक से अधिक काम करो सच्चे भारतीय बनो ।
हिंदी में काम आसान भारतीयता की पहचान ।
आजादी की पहचान मात्रभाषा का सम्मान ।

जिन्दा जियेंगे

कुछ काम कर के, कुछ नाम करके
कुछ कष्ट करके, कुछ कष्ट सह के
करेंगे कुछ अच्छा, करेंगे कुछ सच्चा
जीवन की धारा में, बहते चलेंगे
जलते चलेंगे, बनते चलेंगे
मगर रौशनी में, जगमगाते रहेंगे
आखिरी समय तक, जिन्दा जियेंगे
जिन्दा जियेंगे, जिन्दा जियेंगे

अपनों से अपनी बात

"CHAIRMAN RELIEF FUND" बनाया जा रहा है, जानकर ख़ुशी हुई, बोर्ड में राहत कोष की स्थापना का विचार आया अब राहत कब मिलेगी उस अव्यवस्था से जिसमें तरह -तरह के हितों की पूर्ति के लिए गुरु - चेलों की श्रंखला, अपने - पराये का विभाजन, अपने लोगों की पहचान, अपनों का काम, हाय अपने - बस यही होता रहता है और कोई काम नहीं। आखिर किन आधारों पर हम छोटे से बोर्ड में अपने - पराये का बंटवारा करने में लगे हैं, सिर्फ अपने तुछ स्वार्थ, छोटी मानसिकता के साथ। एक छोटा संगठन जहाँ अच्छा काम करने की संभावना थी उसमे भी अपनी असलियत और छोटी मानसिकता का परिचय दे रहे हैं। हम सब किस लायक बचे हैं ? क्या गुलाम भारत के, आजाद भारत के लिए यही सपने थे ? न ही कहीं अच्छा काम करने के लिए कोई कह रहा है और न ही कोई कर रहा है बस अपनी तारीफें बटोरने को हम अपनी क़ाबलियत और योग्यता मानकर अहम् करें तो इससे बढ़कर मुर्खता और क्या होगी। योग्यता और प्रतिभा तो लोगों को सुविधा और राहत प्रदान करने में है न की कष्ट व तकलीफ देने में।
आओ मिलकर कुछ अच्छा करें जिससे आपस की दूरियां मिटें, कुछ आगे बढ़ें, एक नया रास्ता चुनें जहाँ सब मिलकर रह सकें।

राष्ट्र भाषा पर विशेष

राष्ट्र भाषा है देश की पहचान
हिन्दी में काम, राष्ट्र भाषा का सम्मान
श्रमिक और हिन्दी को आगे है लाना
देश को समृधि की ओर है ले जाना

महिला दिवस पर

मरती खपती, बचती बचाती, कभी जन्म ले पाती, कभी मार दी जाती
कभी खामोस रह के, कभी अपनी बात कह के, कभी दुखों को उठाती, कभी दुखों से टकराती
कभी नितांत अकेली, कभी संग तुम्हारे जुड़े के, मैं एक नन्ही बच्ची, ढूंड रही हूँ कब से
एक छोटा सा कोना, एक सुंदर सा कोना, जिसे कह सकूँ अपना, जहाँ रख सकूँ सपना
जहाँ अहसान न हो, जहाँ नेगेहबान न हो, जहाँ अन्य से जुड़ कर, मेरी पहचान न हो
जहाँ रह सकूँ जिन्दा, बिना किसी डर के, अपने भरोसे, अपनी तरह से
मुझे मेरा कोना, कभी तो मिलेगा, जहाँ मेरा सपना पलेगा, फलेगा

जीवन की कीमत

मेरी इक्यावन कविताएँ में से एक कम,
सी बी डब्लू इ के पचास वर्ष होने पर
सभी को बधाई
मजदूरों और कामगारों की जागरूकता के लिए
हमने नौकरी है पाई,
करेंगे मेहनत, दिलाएंगे मेहनत की कीमत,
तभी हम पाएंगे जीवन की कीमत
पुनः सभी को बधाई, सभी को बधाई