महिला दिवस पर

मरती खपती, बचती बचाती, कभी जन्म ले पाती, कभी मार दी जाती
कभी खामोस रह के, कभी अपनी बात कह के, कभी दुखों को उठाती, कभी दुखों से टकराती
कभी नितांत अकेली, कभी संग तुम्हारे जुड़े के, मैं एक नन्ही बच्ची, ढूंड रही हूँ कब से
एक छोटा सा कोना, एक सुंदर सा कोना, जिसे कह सकूँ अपना, जहाँ रख सकूँ सपना
जहाँ अहसान न हो, जहाँ नेगेहबान न हो, जहाँ अन्य से जुड़ कर, मेरी पहचान न हो
जहाँ रह सकूँ जिन्दा, बिना किसी डर के, अपने भरोसे, अपनी तरह से
मुझे मेरा कोना, कभी तो मिलेगा, जहाँ मेरा सपना पलेगा, फलेगा

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